शराबबंदी से लेकर जमीन के अधिकार तक: झाबुआ के आदिवासियों ने उठाई मुखर आवाज, कलेक्टर को सौंपा ज्ञापन
झाबुआ। आदिवासी अधिकारों और समाज में व्याप्त बुराइयों के खिलाफ एकजुट होकर झाबुआ जिले में आदिवासी विकास परिषद के नेतृत्व में हजारों लोगों ने जोरदार प्रदर्शन किया। इस ऐतिहासिक धरने का मुख्य मुद्दा था – आदिवासी क्षेत्रों में पूर्ण शराबबंदी की मांग, साथ ही जल, जंगल और जमीन पर आदिवासी समुदाय के पारंपरिक अधिकारों को सुरक्षित करने की दिशा में ठोस कदम उठाना। इस आंदोलन के अंतर्गत प्रदर्शनकारियों ने जिला मुख्यालय पर एकत्र होकर शांति पूर्ण रैली निकाली, जिसके बाद कलेक्टर द्वारा मुख्यमंत्री और राज्यपाल के नाम ज्ञापन सौंपा गया। प्रदर्शन में मुख्य रूप से आदिवासी विकास परिषद के मथियास भूरिया , अलीराजपुर कांग्रेस के वरिष्ट नेता महेश पटेल, विनय भाबोर सहित अन्य आदिवासी नेता उपस्थित रहे।
शराबबंदी की मांग – एक सामाजिक परिवर्तन की ओर कदम
आदिवासी विकास परिषद ने अपने ज्ञापन में कहा कि झाबुआ और आसपास के आदिवासी क्षेत्रों में शराब की बढ़ती उपलब्धता और खपत ने समाज को भीतर से खोखला कर दिया है। नशे के कारण घरेलू हिंसा, बेरोजगारी, स्वास्थ्य समस्याएं, और शिक्षा में गिरावट जैसी समस्याएं व्यापक रूप से फैल रही हैं। परिषद का मानना है कि यदि इन क्षेत्रों में पूर्ण शराबबंदी लागू कर दी जाए, तो समाज में सकारात्मक बदलाव आ सकता है। परिषद के प्रमुख नेताओं का कहना है कि "सरकार ने आदिवासी समाज के हितों की रक्षा का वादा किया था, लेकिन शराब ठेकों को लाइसेंस देने में प्रशासन आगे है, जबकि इससे समाज टूट रहा है। हम अपने बच्चों का भविष्य बचाना चाहते हैं, इसलिए यह मांग केवल राजनीतिक नहीं, सामाजिक परिवर्तन की मांग है।"

जल-जंगल-जमीन: अधिकार की लड़ाई
शराबबंदी के साथ ही आदिवासी विकास परिषद ने 'जल-जंगल-जमीन' के अधिकारों को लेकर भी गंभीर चिंता जताई। ज्ञापन में इस बात का उल्लेख किया गया कि आदिवासी क्षेत्रों में खनन, वन कटाई और बाहरी तत्वों की घुसपैठ के कारण समुदाय अपने पारंपरिक संसाधनों से वंचित हो रहा है। आदिवासी समुदाय के लोगों का कहना है कि सरकारी नीतियों और प्रशासनिक उपेक्षा के कारण उनके पारंपरिक संसाधनों पर अतिक्रमण बढ़ रहा है। वन अधिकार कानून (2006) का सही तरीके से क्रियान्वयन नहीं होने के कारण आदिवासियों को जमीन के पट्टे नहीं मिल पा रहे हैं। प्रदर्शनकारियों ने कहा कि संविधान की पाँचवीं अनुसूची और पेसा कानून (PESA Act) के अंतर्गत आदिवासियों को ग्राम सभा के माध्यम से अपने जल, जंगल और जमीन की रक्षा करने का अधिकार प्राप्त है, लेकिन व्यावहारिक रूप में इन कानूनों को लागू नहीं किया जा रहा है।
धरना प्रदर्शन में उमड़ा जनसैलाब
धरना प्रदर्शन में बड़ी संख्या में पुरुष, महिलाएं, युवा और बुजुर्ग पारंपरिक वेशभूषा में शामिल हुए। प्रदर्शन के दौरान पारंपरिक आदिवासी नृत्य और लोकगीतों के माध्यम से लोगों ने अपनी संस्कृति और हकों के प्रति जागरूकता का संदेश दिया। "हमारा जल, जंगल, जमीन – नहीं देंगे किसी को अधिकार" जैसे नारों से पूरा जिला मुख्यालय गूंज उठा। कार्यक्रम की शुरुआत स्थानीय देवताओं की पूजा और आदिवासी रीति-रिवाजों के अनुसार हुई, जिसके बाद सभा को परिषद के प्रमुख नेताओं ने संबोधित किया। वक्ताओं ने सरकार को चेतावनी दी कि यदि समय रहते मांगे नहीं मानी गईं, तो आंदोलन को और अधिक व्यापक किया जाएगा।
राज्यपाल और मुख्यमंत्री को सौंपा ज्ञापन
आदिवासी विकास परिषद के प्रतिनिधिमंडल ने जिला कलेक्टर के माध्यम से मुख्यमंत्री और राज्यपाल को दो अलग-अलग ज्ञापन सौंपे। ज्ञापन में निम्नलिखित प्रमुख मांगें शामिल थीं:
- झाबुआ सहित समस्त आदिवासी बहुल जिलों में पूर्ण शराबबंदी लागू की जाए।
- पेसा कानून को जमीनी स्तर पर प्रभावी रूप से लागू किया जाए।
- ग्राम सभाओं को निर्णय लेने की पूर्ण स्वतंत्रता और अधिकार दिए जाएं।
- बाहरी कंपनियों और लोगों द्वारा की जा रही खनन और वन दोहन की गतिविधियों पर रोक लगाई जाए।
- जल संसाधनों पर समुदाय के पारंपरिक अधिकार को मान्यता दी जाए।
प्रशासन की प्रतिक्रिया
जिला प्रशासन ने ज्ञापन को राज्य सरकार तक पहुँचाने का आश्वासन दिया है। कलेक्टर ने कहा कि शांतिपूर्ण ढंग से अपनी मांगों को रखने का अधिकार लोकतंत्र में सभी को है, और प्रशासन इस ज्ञापन को गंभीरता से राज्य स्तर पर प्रस्तुत करेगा। हालांकि, आंदोलनकारी नेताओं ने यह भी कहा कि अब केवल आश्वासन नहीं, ठोस कार्रवाई चाहिए। परिषद के सुरेश डामोर ने कहा, "हमने वर्षों तक इंतजार किया है, अब और इंतजार नहीं करेंगे। यह आंदोलन चेतावनी है – या तो हमारी मांगे मानी जाएं या संघर्ष और तेज़ होगा।"
जनप्रतिनिधियों की चुप्पी पर उठे सवाल
इस पूरे आंदोलन के दौरान स्थानीय विधायकों और सांसदों की अनुपस्थिति पर लोगों ने नाराजगी जताई। प्रदर्शनकारियों ने कहा कि चुनाव के समय नेता आदिवासी समाज की दुहाई देते हैं, लेकिन जब असली मुद्दों पर खड़ा होने का वक्त आता है, तो सभी गायब हो जाते हैं। परिषद ने मांग की कि आने वाले विधानसभा सत्र में इन मुद्दों को मजबूती से उठाया जाए।
आदिवासी नेताओं ने क्या कहा?
अलीराजपुर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता महेश पटेल ने सरकार से मांग की है कि स्वर्गीय दिलीपसिंह भूरिया के सपनों को साकार करते हुए आदिवासी बहुल जिलों में PESA एक्ट के तहत शराबबंदी की घोषणा की जाए। उन्होंने कहा कि यह भूरिया जी के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी। पटेल ने मुख्यमंत्री और आदिवासी विकास मंत्री निर्मला भूरिया से अपील करते हुए कहा, "शराब की लत ने आदिवासी समाज को बर्बाद कर दिया है। PESA कानून के तहत आदिवासी क्षेत्रों में शराब पर प्रतिबंध लगाकर हम उनके सपनों को पूरा कर सकते हैं। उन्होंने आगे कहा कि भूरिया जी आदिवासियों के हितों के लिए संघर्ष करते रहे और शराबबंदी उनकी प्रमुख मांगों में से एक थी। सरकार को इस दिशा में तुरंत कदम उठाने चाहिए। आदिवासी विकास परिषद के मथियास भूरिया ने कहा, "हमारा संघर्ष सिर्फ शराबबंदी तक सीमित नहीं है, बल्कि हमारा उद्देश्य आदिवासी समाज को सशक्त बनाना है। सरकार हमारे जल, जंगल और जमीन के अधिकारों की रक्षा करे। हम चाहते हैं कि हमारे बच्चों को अच्छी शिक्षा मिले और युवाओं को रोजगार के अवसर प्राप्त हों। परिषद की महिला विंग की राधिका बारिया ने कहा, "शराब की लत ने हमारे समाज को बर्बाद कर दिया है। पुरुषों की शराबखोरी के कारण महिलाओं और बच्चों को गरीबी और हिंसा का सामना करना पड़ता है। हम सरकार से मांग करते हैं कि झाबुआ में शराब की दुकानें बंद की जाएं।
आदिवासी अधिकारों की मशाल थामे बबीता कच्छप ने उठाई आवाज: "जनजातीय भूमि अधिग्रहण असंवैधानिक
भील प्रदेश की बहू' और झारखंड की बेटी के रूप में विख्यात सामाजिक कार्यकर्ता बबीता कच्छप विशेष रूप से इस प्रदर्शन में शामिल हुई बबिता ने आदिवासी भूमि अधिग्रहण के खिलाफ जोरदार आवाज उठाई है। उन्होंने प्रशासन के समक्ष संवैधानिक प्रावधानों का हवाला देते हुए कहा कि "सुप्रीम कोर्ट के समता जजमेंट (1997) के अनुसार, वन व सरकारी भूमि पर सरकार का मनमाना अधिकार नहीं है। कच्छप ने भूमि अधिग्रहण कानून 2013 की धारा 41-42 का उल्लेख करते हुए स्पष्ट किया कि "अनुसूचित क्षेत्रों में आदिवासियों की जमीन ग्राम सभा की अनुमति के बिना नहीं ली जा सकती। अब तक सभी ग्राम सभाओं ने अधिग्रहण का विरोध किया है, फिर भी कंपनियां जबरन अधिग्रहण कर रही हैं।" उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा, "मध्य प्रदेश भू-राजस्व संहिता के तहत गलत अधिग्रहण के लिए कलेक्टर जिम्मेदार होंगे। हम उनके खिलाफ न्यायालय में मुकदमा दर्ज करेंगे।" साथ ही उन्होंने डॉ. कमलसिंह डामोर के भूमि संरक्षण प्रयासों में बाधा डालने वालों को आड़े हाथों लेते हुए कहा, "चाहे कंपनी करोड़ों की इमारत खड़ी कर दे, लेकिन अंततः मालिकाना हक धारक को ही जमीन लौटानी होगी।
स्थानीय लोगों की प्रतिक्रिया
प्रदर्शन में शामिल स्थानीय निवासी रमेश कटारा ने कहा, "हमारे जंगलों को कॉरपोरेट घरानों को दे दिया जा रहा है, जबकि ये हमारे पूर्वजों की संपत्ति हैं। सरकार हमारे अधिकारों की अनदेखी कर रही है।" एक अन्य युवा प्रदर्शनकारी सुरेश डामोर ने कहा, "हम चाहते हैं कि सरकार हमारी आवाज सुने। अगर हमारी मांगें नहीं मानी गईं, तो हम और बड़े आंदोलन करेंगे।"
आगे की रणनीति
आदिवासी विकास परिषद ने चेतावनी दी है कि यदि आने वाले दो महीनों में सरकार की ओर से इन मांगों पर कोई ठोस कार्यवाही नहीं होती, तो वे प्रदेश भर में आंदोलन को फैलाएंगे। साथ ही दिल्ली तक मार्च करने की योजना भी बनाई जा रही है। झाबुआ में आदिवासी विकास परिषद के नेतृत्व में हुए इस आंदोलन ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अब आदिवासी समाज अपने अधिकारों को लेकर जागरूक और संगठित हो रहा है। यह सिर्फ एक क्षेत्रीय आंदोलन नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक पुनर्जागरण की लहर है, जिसमें शराबबंदी एक प्रतीक बन चुकी है — आत्म-संरक्षण और गरिमामय जीवन की ओर बढ़ते कदम का।
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