झाबुआ में तीन वर्ष बाद अब फिर से कॉलेज मैदान पर ही होगा रावण दहन

प्रशासन को नहीं मिली कोई जमीन .
झाबुआ। वर्ष 2018 के बाद एक बार फिर रावण दहन कॉलेज मैदान पर किया जाएगा। प्रशासन ने ही यहां पर किसी भी तरह के सार्वजनिक और राजनीतिक आयोजन पर प्रतिबंध लगा दिया था। चूंकि दशहरा उत्सव मनाने के लिए कहीं कोई जमीन उपलब्ध नहीं हो पाई, लिहाजा अब एक बार फिर परंपरा का निर्वहन कॉलेज मैदान पर ही किए जाने की तैयारी चल रही है। रावण का पुतला तैयार हो चुका है। अन्य इंतजाम भी किए जा रहे है। गौरतलब है कि वर्षों से रावण दहन कॉलेज मैदान पर ही होता रहा है। 
       वर्ष 2019 में यहां रनिंग ट्रैक बनाया गया। ऐसे में खिलाड़ियों ने मैदान पर किसी भी तरह के आयोजन नहीं करने की मांग की। ऐसे में प्रशासन ने भी सभी तरह के सार्वजनिक आयोजन पर प्रतिबंध लगा दिया। इसके बाद से सभी सरकारी और राजनीतिक आयोजन पॉलीटेक्निक कॉलेज मैदान पर होने लगे। तब से यहां रावण दहन भी नहीं किया गया। इस बार फिर कॉलेज मैदान पर ही उत्सव मनाया जा रहा है। यहां थांदला से आए कलाकारों ने 52 फीट का रावण का पुतला तैयार किया है।  इसके अलावा वीआईपी के बैठने के लिए अलग से इंतजाम किए. जा रहे है। स्टेडियम बना होने से रावण दहन देखने वालों को किसी तरह की दिक्कत भी नहीं आएगी और भगदड़ जैसे हालात नहीं बनेंगे।

रोचक है रावण दहन का इतिहास 
झाबुआ में रावण दहन की परंपरा 369 साल से अनवरत जारी है... इतिहासविद डॉक्टर केके त्रिवेदी के अनुसार झाबुआ में रावण दहन की परंपरा 1648 में शुरू हुई थी। राठौर वंश के तीसरे शासक माहसिंह ने बदनावर से राजधानी स्थानांतरित कर झाबुआ को राजधानी बनाया था। उन्होंने पहली बार झाबुआ में दशहरा मैदान पर रावण दहन की परंपरा शुरू की। लगभग 80 साल तक इसी मैदान पर रावण दहन किया जाता रहा है। राजशाही के समय से ये परंपरा चली आ रही है,  इसे दशहरा मैदान कहा जाता था। बाद में यहा कॉलेज भवन बना और ये कॉलेज मैदान हो गया। दशहरे के दिन और उसके अगले दिन सवारी निकाली जाती थी। झाबुआ राजवाड़ा से जुड़े सभी 46 उमराव (ठिकानेदार ) अपने घोड़े लेकर दशहरे के दिन यहां आते थे। जामली से हाथी भी आता था। पहले गोवर्धननाथजी की हवेली के दर्शन करके दशहरा मैदान जाते थे। रावण दहन के बाद कालिका माता मंदिर के दर्शन करके राजवाड़ा लौटते थे। इतिहासकार डॉक्टर केके त्रिवेदी के अनुसार इस मैदान पर चौगानिया पाड़ा दौड़ाया जाता था। दो दिनों तक आयोजन होते थे। पाड़ा दौड़ाने के कार्यक्रम में दौड़ते पाड़े ठिकानेदार तलवारों से वार करते थे। जो ठाकुर एक बार में वध कर दे, उसे शूरवीर माना जाता था। इसके अलावा नीलकंठ की सवारी निकाली जाती थी। इसमें सारे उमराव की घोड़े के साथ सवारी निकलती थी।
यहाँ 42 साल से हो रहा दहन
      गोपाल कॉलोनी में रहने वाले त्रिवेदी परिवार द्वारा 42 वर्षों से रावण दहन कार्यक्रम किया जा रहा हैं। ये परंपरा अभी तक नहीं टूटी है। इसे उन लोगों ने अपनी युवावस्था में शुरू किया था, जो अब बुजुर्ग हो चुके हैं। अब जिम्मेदारी नई पीढ़ी ने उठा ली। त्रिवेदी परिवार का ये रावण ऊंचाई तो 10 फीट के लगभग होता है, लेकिन इसकी सुंदरता निहारने शहर से कई लोग आते हैं।  
आता है 5 से 8 हजार रुपए खर्च
त्रिवेदी परिवार के अश्विन त्रिवेदी द्वारा पिछले 15 वर्षों से इस कार्य को किया जा रहा है । अश्विन ने बताया, कि रावण बनाने पर 5 से 8 हजार रुपए खर्च आता है। अश्विन ने बताया की शुरुवात में बड़े पिताजी श्री राम प्रसाद त्रिवेदी द्वारा रावण दहन का कार्य शुरू किया गया था, उनके द्वारा सतत कई वर्षो तक इस कार्य को किया गया, पिछले 15 वर्षो से में और मेरे अनुज राहुल द्वारा उनके इस दायित्व को आगे बढ़ाते हुए इस कार्य को किया जा रहा है। 

Jhabua dashahra ravan dahan- झाबुआ दशहरा रावण दहन
थांदला से आए कलाकारों ने 52 फीट का रावण का पुतला तैयार किया



 ट्रैफिक विभाग ने दहन के लिए बनाया प्लान 
रावण दहन के दौरान कॉलेज मैदान और आसपास के पूरे हिस्से में ट्रैफिक व्यवस्थाएं प्रभावित न हो इसलिए अलग से प्लान बनाया है। लोगों से ये अपील भी की गई है कि वे जहां तक संभव हो सके कार की बजाए अपने दोपहिया वाहन लेकर ही रावण दहन देखने के लिए आए, जिससे ट्रैफिक व्यवस्था सुचारू रहे। 
ये रहेगा प्लान
शाम 5 बजे से कॉलेज मैदान वाले रोड पर चार पहिया और अन्य बड़े वाहनों की आवाजाही पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दी जाएगी। 
 ये रहेंगे पार्किंग इंतजाम 
  1.  राजगढ़ नाके की तरफ से आने वाले वाहनों को कॉलेज के समीप होस्टल की तरफ खड़ा करवाया जाएगा। 
  2.  राणापुर रोड से आने वाले वाहनों की पार्किंग व्यवस्था गादिया कॉलोनी में रहेगी। 
इनका कहना 
दशहरा उत्सव के लिए कॉलेज मैदान से उचित अन्य कोई स्थान नहीं होने से वहीं पर रावण दहन का आयोजन किया जा रहा है। 
तरुण जैन, डिप्टी कलेक्टर एव प्रशासक, झाबुआ 
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