साहित्य एवं संस्कृति परिषद वनांचल ने आयोजित किया तुलसी अलंकरण सम्मान समारोह

डा. मुरलीधर चांदनीवाला को तुलसी अंकरण एवं श्रीमती माधुरी सोनी को साहित्य साधना सम्मान से सम्मानित किया गया ।

झाबुआ की माटी का अदभुत प्रभाव हे- यहां की माटी को सिर पर लगाना चाहिये-डां चांदनीवाला 

 झाबुआ । साहित्य एवं संस्कृति परिषद वनांचल जिला झाबुआ द्वारा अमर शहीद चन्द्रशेखर आजाद के बलिदान दिवस पर रविवार को एक नीजि गार्डन में वनांचल तुलसी अलंकरण कार्यक्रम का आयोजन किया गया । साथ ही राष्ट्रीय काव्य संग्रह शब्दवट नूतन, अंतस की उर्मिया, अग्नि साहचर्य साहित्य पुस्तक का विमोचन एवं लोकार्पण किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रखर साहित्यकार डा. मुरलीधर पालीवाल रतलाम थे । इस अवसर पर कार्यक्रम की अध्यक्षता इन्दोर के साहित्कयार रामनारायण सोनी ने की, विशिष्ठ अतिथि इतिहासविद डा. केके त्रिवेदी एवं विशेष अतिथि सामाजिक महासंघ के अध्यक्ष नीरजसिंह राठौर थे । इसके अलावा साहित्यकार डा. जया पाठक, संस्था के अध्यक्ष निलेश पंचोली, डा. गीता दुबे, श्रीमती भारती सोनी, श्रीमती माधुरी सोनी, डा. जय बैरागी, श्रीमती चांदनीवाला सहित बडी संख्या में साहित्यकार एवं गणमान्यजन उपस्थित रहें । बडी संख्या में मातृ शक्ति ने भी इस कार्यक्रम में शिरकत की । मां सरस्वतीजी एवं तुलसीदास जी के चित्र पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्वलन कर कार्यक्रम का शुभांरंभ किया गया । मंा सरस्वती की वंदना श्रीमती भारती सोनी ने प्रस्तुत की । 
          मुख्य अतिथि डा. मूरलीधर चांदनीवाला ने कहा कि साहित्य में मातृशक्ति की सक्रियता निनश्चित ही शुभ संकेत है। उन्होने वेदो, पुराणों, उपनिषद, ऋचाओं के बारे में बताते हुए कहा कि तुलसीदासजी का पवित्र नाम हम सबका प्रेरणा स्त्रोत रहा है । उन्होने कितना संघर्ष किया किन्तु राम के प्रति अगाध श्रद्धा के कारण मुगलशासनकाल में पत्तों पर भी अपनी रचना को मूर्तरूप् दिया । आज तुलसी की कृति जनजन की श्रद्धा का केन्द्र है । उन्होन मीरा, कबीर,रैदास का उदाहरण देते हुए कहा कि कितनी विषम परिस्थिति में उनके द्वारा साहित्य की साधना की गई । उन्होने शहीद चन्द्रशेख आजाद के बलिदान दिवस पर उनका स्मरण करते हुए कहा कि इस अंचल की माटी को सिर पर लगाना चाहिये । झाबुआ की माटी का अदभुत प्रभाव है,आजाद ने मात्र 4 वर्ष की आयु में वह कार्य किया जो इतिहास में उनका नाम स्वर्णाक्षरों में लिखा गया है ।उन्होने कहा कि अरण्यो में ही विपूल साहित्य को लिखा गया । वेद में एक बात भी बात नकारात्म नही हे । जीवन जीने का महामंत्र इसमें निहीत है ।उन्हाने महर्षि अरविन्द का जिक्र करते हुए कहा कि उनकी पुस्तक वेद रहस्य ने हमारे प्राचिन गं्रथो के सार का प्रकट किया है । श्री चांदनीवाल ने कहा कि नचिकेता जेसा साहस साहित्यकार में होना चाहिये ।ऋग्वेदन यजुर्वेद में कहीं भी ओम शब्द नही आया है । ओम अर्थ ही आकाश के समान ब्रह्म होता है ।वेदों मे प्रवेशकरना ही सनातन में प्रवेश करना होता है इससे सभी संभव हो जाता हे । डा. केके त्रिवेदी ने भी अपने सारगर्भित उदबोधन में सिकन्दर के भारत में आने के समय दी गई समझाईश के अनुसार ही किसी भी संत या भारत के ग्रंथ का अपमान नही किया था । वह जानता था कि संत एवं ग्रंथ में ही सब कुछ सार है । उनहोने कहा कि यदि हमारे संत4 नही होते तो भारत की भूमि के लोग आनंद की अनुभूति प्राप्त नही कर सकते थे । गीत, संगीत,गजल, कविता, आदि सभी साहित्य के ही स्वरूप है । भारत के विद्वान संतो ने जो साहित्य लिखा वह हमारा मार्गदर्शन करने के साथ ही  साहित्यकारों का प्रेरणा स्त्रोत भी रहा है । उन्होने पुस्तको के महत्व को प्रतिपादित करते हुए कहा कि पुस्तकों केे ज्ञान का जीवन मे महत्व होता हे । ओशों का जिक्र करते हुए डा. त्रिवेदी ने कहा कि उनका साहित्य भी कालजयी है। 
     इस अवसर पर डा. जया पाठक ने हिन्दी भारतीय साहित्य की झाबुआ इकाई का प्रगतिप्रतिवेदन प्रस्तुत किया । उन्होने कहा कि बेहतर जीवन करर रास्ता बेहतर किताबों से ही गुजरता है । इस अवसर पर डा. गीता दुबे, भारती सोनी, माधुरी सोनी, सीमा शाहजी, आरडी बेरागी, अंजना मुबेल, आदि को साहित्स साधना के लिये पुरस्कृ भी किया । कार्यक्रम में साहित्य एवं संस्कृति परिषद वनाचंल तृतीय तुलसी अलंकरण सम्मान समारोह में डा. मूरलीधर चांदनीवाला को तुलसी अलकरण से तथा श्रीमती माधुरी सोनी को साहित्य साधना अलंकरण से प्रशस्ती पत्र एवं शाल ओढा कर सम्मानित किया गया । सम्मानपत्र का वाचन डा. गीता दुबे, एवं जय बैरागी ने किया । कार्यक्रम का सुल संचालन डा. महेन्द्र खुराना ने किया । इस अवसर पर अंतस की उम्रिया, अग्नि साहचर्य, शब्दवट की समीक्षा का वाचन भी किया गया । कार्यक्रम के प्रारंभ में स्वागत भाषण संस्था के अध्यक्ष निलेश पंचोली ने दिया । डा. रामनारायण सोनी ने प्रतिवर्ष तुलसी अलंकरण सम्मान के लिये सहयोग देने की घोषणा की ।



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