देवझिरी तीर्थ पर ज्ञात इतिहास का प्रथम जैन चातर्मास का हुआ शुभारंभ
आगामी चार महिनों तक इस पवित्र भूमि पर प्रतिदिन ज्ञान गंगा का प्रवाह होगा।
आचार्यश्री पूर्णिमा से 108 दिन की करेगें मौन आराधना
झाबुआ। रविवार को पवित्र देवझिरी तीर्थ पर पूज्य आचार्य सुयश सूरिश्वरजी मसा एवं पूज्य सिद्धीरत्न विजय जी मसा का चातुर्मास के लिये मंगल प्रवेश हुआ । पूज्य आचार्यजी एवं मुनिजी को इन्दौर अहमदाबाद राजमार्ग से बेण्डबाजों के साथं मंगल कलश उठाये महिलाओं एवं श्रावकजनों ने जयघोष के साथ स्वागत किया तथा देवझिरी स्थित श्री आदिनाथ माणिभद्र मंदिर में उनका विधिविधान एवं शास्त्रोक्त मंत्रों के साथ स्वागत किया गया । आयोजन समिति के अध्यक्ष निर्मल मेहता द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार पूज्य आचार्य सुयशसूरिश्वर जी मसा ने चातुर्मास के शुभारंभ के अवसर पर कहा कि देवझिरी वह पवित्र भूमि है जहां अभी तक के इतिहास में किसी भी जैन साधु महात्मा का चातुर्मास नही हुआ है । आगामी चार महिनों तक इस पवित्र भूमि पर प्रतिदिन ज्ञान गंगा का प्रवाह होगा । आचार्य श्री सुयश विजय जीे का कि पूण्य से अनुकुलता एवं पाप से प्रतिकूलता उत्पन्न होती है ।
अनुकुलता होना ही पूण्य का होना प्रतिकुलता का होना पाप का उदय होता है । धन दौलत सभी भ्रम है। एक अरबनति को रात भर निन्द नही आती है और एक गरीब जमीन पर भी आराम से निंद लेता है। चातुर्मास में हम पूण्य कमाने का मौका मिला है। देवझिरी एक साधना भूमि है । उन्होने कहा कि निकटवर्ती गा्रम हडमतिया में जैन मंदिरों के अवशेष मिलना ही इस पूण्य भूमि का प्रमाण है ।
आचार्य सुयशसूरीश्वर ने श्रावको को संबोधित करते हुए कहा कि पूण्य के पांच प्रकार होते है, आवास पूण्य, भोजन पूण्य, जल पूण्य, पात्र पूझय एवं वस्त्र पूण्य । पांचों पूण्यों की विस्तार से व्याख्या करते हुए कहा कि भगवान श्री आदीनाथजी की छत्रछाया में यहां चातुर्माय का आयोजन भगवान माणिभद्रजी के सानिध्य में होना एक दुर्लभ अवसर है । उन्होने कहा कि समाज की व्यवस्था समय के साथ बदलती रही है। गुरू महाराज के आशीर्वाद से चातुर्माण के अवसर पर हम सभी में स्थिरता का भाव होना चाहिये ।
आचार्य श्री ने आगे कहा कि चार महीने तक चौमासा के दौरान भगवान आदीनाथ ने तप किया तािा उन्हे आवास दान दिया था । अन्नदान, पानी दान,पात्र दान आदि का चातुर्मास में लाभ मिलना पूण्य का कार्य होता हे । उन्होने बताया कि देवझिरी तीर्थ स्थल पर आसरढ पूर्णिमा से उनके द्वारा 108 दिनों की तपस्या की जावेगी इस अवसर पर दीप प्रज्वलित होगा जो अखण्ड प्रकाश रहेगा ।
आचार्य सुयश सूरीश्वर जी ने कहा कि देवझिरी में उनका 44 वां चातुर्मास है । चातुर्मास में भावपूर्वक आराधना होना चाहिये । मानव जीवन दुर्लभ है इसलिये 84 लाख योनी के बाद हमे जो अवसर मिला है वह साधु सेवा में व्यतित करना चाहिये । उनहोने कहा कि हमारी जेसी प्रवृर्ति होती है वेसा ही हमे अगल जन्म मिलता है । मानव जीवन अमूल्य है इसलिये इसे खुला रखना जरूरी है तािा जीवन में सदभाव होना चाहिये । जैन दर्शन कहता है कि आदत से जुड गये तो आसक्ति हो जाती है। किसी के साथ स्थायी रूप् से जुडे ऐसे प्रयास नही होना चाहिये । आचार्यश्री ने कहा कि जीवन की उपलब्धियों को जोड लेना चाहिये । सदपुरूषो के जाने से विचार भी परिवर्तित होते हे । हमे जीवन में जो कुछ भी मिला है वह पूण्य से ही मिला है । पूण्य से कमाई गइ्र राशि के छः हिस्से करना चाहिये इसमें से एक भाग जहां वापस होने की गारंटी नही होती है अर्थाद सद उपयोग में खर्च करना चाहिये पूण्य के बीज बोने पर अंकुरित होने पर वे वटवृक्ष की तरह बनना ही है ।
पूज्य आचार्य सुयशसूरीश्वरजी ने बताया कि 24 जुलाइ्र पूर्णिमा से ज्ञान पंचमी तक 108 दिन की वे साधना देवझिरी स्थल पर करेगें । इसके लिये ट्रस्ट की ओर व्यापक तेयारिया की गई है । इस अवसर पर निर्मल मेहता, मनोहर भंडारी, जय भंडारी, बाबुलाल कोठारी, नितेश कोठारी, भल्ला कोठारी, विशाल कोठारी, प्रकराश कटारिया, विशाल कोठारी, रिंकू रूनवाल, सूर्या कांठी, महेन्द्र भाई मुंबई, नैनेस भाई दाहोद,जयन्तीलाल रानापुर, धर्मचन्द्र जी लिमडी,पोपट भाई मुंबई, राकेशभाई दाहोद, संजय मेहता रतलाम, जीतेन्द्र मालवी, सुनील कटकानी सहित बडी संख्या में श्रावक एवं श्राविकाओं ने चातुर्मास के प्रथम दिन का लाभ लिया । इस अवसर पर विधिकारक अनील हरड लिमडी द्वारा सफल संचालन किया गया ।
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