राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लेकर सांसद गुमानसिंह डामोर ने प्रधानमंत्री को लिखा पत्र
भीली भाषा में हो पढ़ाई, पाठ्यक्रम में शामिल करें
झाबुआ। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में स्थानीय भाषा का समावेश हर क्षेत्र में किया गया है। आदिवासी क्षेत्रों की स्थानीय भाषा भीली है। इसे भी पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए। इसके लिए विशेष तैयारियों के तहत डिक्शनरी तैयार कर हिंदी और अंग्रेजी को भीली भाषा में रूपांतरित करने की ओर कार्य करना होगा। रतलाम-झाबुआ संसदीय क्षेत्र के सांसद गुमानसिंह डामोर ने इसके लिये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है। साथ ही सांसद ने एक पत्र राष्ट्रीय शिक्षा नीति आयोग को भी लिखा है।
डामोर ने बताया कि मातृभाषा और स्कूल की भाषा में अंतर होने से 25 प्रतिशत बच्चे सीखने की कमी का सामना करते हैं। इससे सबसे ज्यादा आदिवासी, सीमावर्ती क्षेत्रों और प्रवासी श्रमिकों के बच्चों के अलावा वे बच्चे प्रभावित होते हैं जो स्कूल में अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाई करते हैं, लेकिन घर या अन्य किसी मौके पर अंग्रेजी भाषा का इस्तेमाल नहीं करते हैं। डामोर ने कहा कि शिक्षा में भाषाओं का मानचित्रण होना जरूरी है। मौखिक शिक्षण क्षेत्र में बच्चों की मातृभाषा को शामिल करने की शुरुआत होना सुखद पहलू है। बच्चों की शिक्षण सामग्री स्थानीय भाषा में तैयार की जानी होगी। शिक्षकों की भर्ती या किसी खास इलाके में तैनाती को उस क्षेत्र की स्थानीय भाषा से जोड़ी जा सकता है। पाठ्यक्रमों में भाषाई कौशल के विकास पर ध्यान दिया जाए।मातृभाषा और स्थानीय भाषा को दी अहमियत
डामोर ने शिक्षा नीति का उल्लेख करते हुए बताया कि सरकार की योजना है कि स्कूली शिक्षा से उच्च शिक्षा तक भारतीय भाषाओं को शामिल किया जाए। इसमें इंजीनियरिंग और मेडिकल पढ़ाई भी शामिल है। नई शिक्षा नीति में स्कूली शिक्षा में अब त्रिभाषा फार्मूला चलेगा। इसमें संस्कृत के साथ तीन अन्य भारतीय भाषाओं का विकल्प होगा। इलेक्टिव में ही विदेशी भाषा चुनने की भी आजादी होगी। सरकार ने पांचवीं क्लास तक मातृभाषा, स्थानीय या क्षेत्रीय भाषा में पढ़ाई का माध्यम रखने की योजना बनाई है, इसे कक्षा आठ या उससे आगे भी बढ़ाया जा सकता है। विदेशी भाषाओं की पढ़ाई सेकंडरी लेवल से होगी। नीति में अलग-अलग भाषाओं पर ही जोर दिया गया है। हालांकि नई शिक्षा नीति में यह भी कहा गया है कि किसी पर कोई भी भाषा थोपी नहीं जाएगी।
क्यों है मातृभाषा जरूरी
नई शिक्षा नीति में निचले स्तर की पढ़ाई के माध्यम के लिए मातृभाषा, स्थानीय भाषा के प्रयोग पर जोर दिया गया है। इसका उद्देश्य बच्चों को उनकी मातृभाषा और संस्कृति से जोड़े रखते हुए उन्हें शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ाना है। अपनी मातृभाषा, स्थानीय भाषा में बच्चे को पढ़ने में आसानी होगी और वह जल्दी सीख पाएगा। छोटे बच्चे घर में बोले जाने वाली मातृभाषा या स्थानीय भाषा में जल्दी सीखते हैं। यदि स्कूल में भी मातृभाषा का प्रयोग होगा तो इसका ज्यादा प्रभाव होगा और वे जल्दी सीख पाएंगे और उनका ज्ञान बढ़ेगा। इसके साथ ही शिक्षा प्रणाली में भारतीय भाषाओं को शामिल करने का एक उद्देश्य उन्हें सहेजना और मजबूत बनाना है। शिक्षा में स्थानीय भाषा शामिल करने से लुप्त हो रही भाषाओं को नया जीवनदान मिलेगा और बच्चों को अपनी संस्कृति से जोड़े रखने में मदद मिलेगी।
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