आजाद जयन्ती पर भाजपा ने किया आजाद को स्मरण अर्पित की पुष्पाजंलि
आजाद की जन्म भूमि भाबरा भी पहूंच कर आजाद स्मृति मंदिर मे जाकर नमन किया तथा श्रद्धासुमन अर्पित किये.
झाबुआ। अमर शहीद चन्द्रशेखर आजार की 114 वीं जन्म जयंती पर भारतीय जनता पार्टी द्वारा देश के सपूत को स्मरण कर उन्हे पुष्पांजलि अर्पित की गई। स्थानीय आजाद चौक स्थित आजाद प्रतिमा पर प्रातः 9 बजेे सांसद गुमानसिंह डामोर केे मुख्य आतिथ्य तथा जिला भाजपा जिलाध्यक्ष लक्ष्मणसिंह नायक के विशेष आतिथ्य में आजाद प्रतिमा का पुष्पमालायें पहिना कर उन्हे स्मरण कर उनके पद चिन्हो पर चलने का संकल्प लिया गया। इस अवसर पर सांसद गुमानसिंह डामोर ने आजाद के जीवन वृत पर संबोधित करते हुए कहा कि देश की आजादी के लिए लोहा लेने वाले चंद्रशेखर का जन्म 23 जुलाई 1906 को मध्य प्रदेश के झाबुआ जिसे के भाबरा गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम पंडित सीताराम तिवारी जबकि माता का नाम जगरानी देवी था। गांव के ही स्कूल से प्रारंभिक शिक्षा लेने के बाद वे अध्ययन के लिए वाराणसी की ओर चले गए। वहां वह राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से बहुत प्रभावित हुए और असहयोग आंदोलन में कूद पड़े। चंद्रशेखर इस दुनिया में महज 24 साल ही बिता पाए लेकिन उनसे और उनके साथी क्रातिकारियों से अंग्रेज खौफ खाया करते थे। सांसद डामार ने कहा कि उन्होने 13 साल की उम्र में खाए 15 कोड़े, फिर कहलाए आजाद। वर्ष 1921 में महज 13 साल की उम्र के चंद्रशेखर को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। वह संस्कृत कॉलेज के बाहर प्रदर्शन कर रहे थे। चंद्रशेखर को गिरफ्तार करने के बाद पुलिस उन्हें मजिस्ट्रेट के पास लेकर गई। वहां जब मजिस्ट्रेट ने उनसे उनका नाम पूछा तो उन्होंने कहा आजाद, जब उनके पिता का नाम पूछा गया तो उन्होंने कहा स्वाधीनता। इसके बाद उनसे उनके घर का पता भी पूछा गया। श्री डामोर ने कहा कि चंद्रशेखर ने पूरी निडरता के साथ जवाब देते हुए कहां जेल। उनकी तरफ से ऐसे जवाब सुनकर मजिस्ट्रेट गुस्से में आ गया और उन्हें 15 कोड़े मारने की सजा दी गई। छोटा बालक होकर इतनी बड़ी सजा मिलने के बाद भी वह डरे नहीं। कोड़े पड़ने से उनकी कमर लहू लूहान हो चुकी थी। जब भी उन्हें कोड़ा पड़ता तो वह महात्मा गांधी की जय बोलते। उसी दिन से उनके नाम के आगे आजाद जुड़ गया।
इस अवसर पर जिला भाजपा अध्यक्ष लक्ष्मणसिंह नायक ने कहा कि चंद्रशेखर आजाद ने कसम खाई थी कि चाहें कुछ भी हो जाए लेकिन वह जिंदा अंग्रेजों के हाथ नहीं आएंगे। इसलिए जब 27 फरवरी 1931 को अंग्रेजों ने इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में उन्हें चारों तरफ से घेर लिया था तो उन्होंने अकेले ही ब्रिटिश सैनिकों से मुकाबला किया। जब उनकी रिवाल्वर में आखिरी गोली बची तो उन्होंने खुद पर ही गोली चला दी, जिससे वह जिंदा न पकड़े जाएं। आजाद को डर था कि अगर वह जिंदा पकड़े गए तो अंग्रेजी हुकूमत को जड़ से मिटाने का उनका सपना अधूरा रह जाएगा। दरअसल आजाद अल्फ्रेड पार्क में भगत सिंह को जेल से निकालने समेत कई महत्वपूर्ण विषयों पर अपने साथियों के साथ बैठक कर रहे थे लेकिन तभी उन्हें खबर लगी कि अंग्रेजों ने पार्क को चारों तरफ से घेर लिया है। आजाद ने अंग्रेजों से अकेले ही मुकाबला करते हुए अपने साथियों को पार्क से बाहर निकाल दिया, जिससे भारत की आजादी के लिए बनाई उनकी योजनाओं पर कोई प्रभाव न पड़े। जब उनकी रिवाल्वर में आखिरी गोली बची तो उन्होंने अंग्रेजों के हाथ आने की वजाय खुद के जीवन को खत्म करना चुना और उस आखिरी गोली से अपना जीवन खत्म कर दिया। इस अवसर पर बडी संख्या में नगर मंडल एवं जिला भाजपा के पदाधिकारी एवं कार्यकर्ता उपस्थित थे ।
सांसद गुमानसिंह डामोेर एवं जिला भाजपा अध्यक्ष लक्ष्मणसिंह नायक ने आजाद की जन्म भूमि भाबरा भी पहूंच कर आजाद स्मृति मंदिर मे जाकर नमन किया तथा श्रद्धासुमन अर्पित किये । आजाद के 114 वें जन्म दिवस पर इनके साथ श्रीमती सुरज डामोर,, जोबट के पूर्व विधायक माधोसिंह डावर, जिला पंचायत अध्यक्षा आलीराजपुर अनिता चैहान, नगर पंचायत भाबर की अध्यक्ष श्रीमती निर्मला डावर, जिला महामंत्री अजय जायसवाल, भूपेश सिंगोड, अर्पित कटकानी सहित बडी संख्या में लोगों ने आजाद को नमन किया तथा उन्हे श्रद्धासुमन अर्पित किये ।