जो दर्द और लाचारी को समझता है, वह आराधक और ज्ञानियों की दृष्टि में पूजनीय कहलाता है - प्रन्यास प्रवर जिनेन्द्र विजयजी

बड़ी संख्या में गुरूभक्तों ने उपस्थित होकर अष्ट प्रभावक एवं प्रन्यास प्रवर के दर्शन-वंदन का लाभ लिया।

अष्ट प्रभावक ने आचार्य श्रीमद् विजय जयंतसेन सूरीजी की मांगलिक

झाबुआ। स्थानीय श्री ऋषभदेव बावन जिनालय स्थित पोषध शाला भवन में 22 सितंबर, रविवार को सुबह धर्मसभा में समाजजनों को प्रवचन देते हुए झाबुआ जिले की माटी के सपूत प्रन्यास प्रवर जिनेन्द्र विजयजी मसा ने बताया कि छमस्त सात कारणों से पहचाना जाता है। जो हिंसा करता है, झूठ बोलता है, चोरी का माल लेता एवं देता है, शब्द-रूप-रस गंध का आस्वाद लेता है, पूजा-सत्कार और सम्मान की चाहना रखता है, पापकारी प्रवृत्ति निरंतर रखता है और जीवन में कथन और करनी जिसकी अलग होती है, ये सांत कारण आगम में थानांद सूत्र में कहे गए है। प्रन्यास प्रवर ने बताया कि श्रीयक ने जैसे मंत्री पद को ठुकराया ओर अपने बड़े भाइ्र्र की इज्जत और मान-सम्मान के लिए सम्मान भी ठुकरया। ठीक उसी प्रकार इस संसार में आने और जाने के दो मार्ग ज्ञानियों ने बताएं है। एक तरफ दर्द तो दूसरी ओर लाचारी, ये जो समझे वहीं आराधक और ज्ञानियो की दृष्टि में पूजनीय कहलाता है। 
मांगलिक फरमाई गई
प्रवचन बाद अष्ट प्रभावक आचार्य नरेन्द्र सूरीष्वरजी मसा ने रविवार को मांगलिक फरमाते हुए बताया कि जैनाचार्य पुण्य जयंतसेन सूरीष्वजी मसा ने जिस प्रकार गच्छ वृद्धि हेतु अपना जीवन पुण्य रूप से खपाया और गुरू सेवा के लिए सदैव तत्पर रहे, उसी तरह हमे भी अपने जीवन को गुरू भक्ति में लगाकर धन्य बनाना चाहिए। मांगलिक का समाजजनों ने श्रवण कर धर्म लाभ लिया।
मप्र के अलग-अलग शहरों से गुरू भक्त दर्शन हेतु पहुंचे
रविवार को धर्मसभा में झाबुआ जिले के रानापुर श्री संघ, खट्टाली श्री संघ, कड़ौदकला श्री संघ के सदस्यों ने विशेष रूप से पधारकर धर्म सभा का लाभ लिया। धर्मसभा में रानापुर श्री संघ की ओर से सुरेश समीर ने भी अपने विचार व्यक्त किए। इस दौरान कड़ौदकला श्री संघ की ओर से अष्ट प्रभावक एवं प्रन्यास प्रवर से कड़ौदकला पधारने हेतु विनती भी की गई। इसके साथ ही सभा में विशेष रूप से मप्र के रतलाम, खाचरौद, महिदपुर एवं उज्जैन से भी बड़ी संख्या में गुरूभक्तों ने उपस्थित होकर अष्ट प्रभावक एवं प्रन्यास प्रवर के दर्शन-वंदन का लाभ लिया।

Jhabua News-जो दर्द और लाचारी को समझता है, वह आराधक और ज्ञानियों की दृष्टि में पूजनीय कहलाता है - प्रन्यास प्रवर जिनेन्द्र विजयजी
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