नवकार महामंत्र के आराधकों के एकासने का हुआ आयोजन

आचार्य श्रीजी ने आगे कहा कि परिवर्तन, काल, प्रकृति में कभी भी बदलाव नही होता है, उसी प्रकार नवकार महामंत्र शाष्वत महामंत्र है।

नवकार महामंत्र के जाप से असंभव कार्य भी संभव हो जाते है - अष्ट प्रभावक नरेन्द्र सूरीष्वरजी मसा

झाबुआ। जैन तीर्थ श्री ऋषभदेव बावन जिनालय के पोषध शाला भवन में चल रहे प्रवचनों में 8 अगस्त, गुरूवार को सुबह राजस्थान केसरी, अष्ट प्रभावक आचार्य देवेश श्रीमद् विजय नरेन्द्र सूरीष्वरजी मसा ने धर्मसभा में बताया कि श्रावण मास में वर्तमान चैबीसी के 8 तीर्थंकरों के नव कल्याणक आते है। नवकार महामंत्र की आराधना के अंतर्गत दूसरे दिन पारसनाथ भगवान सिद्ध बने। 
   आचार्य श्रीजी ने बताया कि श्रावण सुदी आठम को नवकार के 9 पद एवं नव कल्याणक, अक्षरों की दृष्टि से नवकार महामंत्र में सबसे छोटा सिद्ध पद है, परन्तु गुण में बड़ा है। सिद्धाणं के पांच अक्षर पंचम गति के परिचायक है। इसमें अशरीरी आरूपी आत्मा सिद्ध षिला में जाती है। नवकार महामंत्र भव भ्रमण से रक्षा हेतु छत एवं छतरी के समान है। आचार्य श्रीजी ने आगे कहा कि परिवर्तन, काल, प्रकृति में कभी भी बदलाव नही होता है, उसी प्रकार नवकार महामंत्र शाष्वत महामंत्र है। व्यवहार-विनय से अरिहंत का उपकार है, परन्तु निष्चय से सिद्ध का उपकार बड़ा है। लोगस्य सूत्र एवं सिद्धाणं में सिद्ध पद को याद किया गया है। भाव भक्ति से जुड़ना यह नवकार महामंत्र में समाहित है। मोक्ष मार्ग की प्ररूपना करने वाले अरिहंत हमारे आराध्य है, सिद्ध हमारा लक्ष्य है। 
मन को शांत रखने हेतु अरिहंत का करे ध्यान
महामंत्र में कोई व्यक्तिवाद नहीं है, अरिहंत शब्द में अर्थ छुपा हुआ है। अरिहंत अस्तित्व आत्मा की रिजुमति अर्थात सरल परिणाम। इंद्रियों में विषय विकार की विकृति जब बढ़ती है, तब आत्मा धर्म से दूर हो जाती है। पांच इंद्रियों में परमेष्ठी को बिठाने की बात आचार्य नरेन्द्र सूरीष्वरजी ने विषेष रूप से कहीं। मन को शांत रखने हेतु अरिहंत का ध्यान एवं सिद्ध की स्थापना आंख में करना चाहिए।
जीवन में क्रोध कभी नहीं आना चाहिए
आचार्य श्रीजी ने आगे कहा कि धर्म ध्यान में क्रोध विकसित करता है। अगर क्रोध सोमवार को आए तो कहना आज चंद्रवार है, इसलिए आज नहीं आना। मंगलवार को आए तो कहना मंगल ही मंगल है, क्रोध रूपी दंगल का आज स्थान नहीं। बुधवार को जब आए तो बुद्धि का हरण करता है, गुरूवार को आए तो गुरू के आषीर्वाद में कमी लाता है। शुक्रवार को शुक्रिया अदा करने का समय है, इसलिए क्रोध शुक्रवार को भी नहीं आना चाहिए। शनिवार जीवन में शनि खतरनाक है, क्रूर से दूर रहना चाहिए, इसलिए आज क्रूर क्रोध नहीं आना चाहिए और आप सब जानते है रविवार को तो छुट्टी होती है, इसलिए जीवन में क्रोध कभी नहीं आना चाहिए।
नवकार में व्यक्ति नहीं गुणों की होती है पूजा
आचार्य श्रीजी ने बताया कि सिद्धाणं के लाल वर्ण से सर्व कार्य सिद्ध होते है। नवकार में व्यक्ति नहीं गुणों की पूजा होती है। नाम और मोह को जीतने के लिए सिद्ध की आराधना जीवन में जरूरी है। नवकार महामंत्र के जाप से असंभव कार्य भी संभव हो जाते है। अष्ट प्रभावक ने बताया कि मिथ्या, दुर्भाव और दूर विचार को दूर करने के लिए नवकार के एक-एक पद में 1008 विद्या समाहित होती है।
नवकार महामंत्र के आराधकों के एकासने के लाभार्थी का हुआ बहुमान
धर्मसभा का संचालन श्री नवल स्वर्ण जयंती चातुर्मास समिति के अध्यक्ष कमलेष कोठारी ने किया। धर्मसभा बाद दादा गुरूदेव श्रीमद् विजय राजेन्द्र सूरीष्वरजी मसा की आरती एवं पूजा का लाभ चातुर्मास समिति के वरिष्ठ एवं समाज रत्न सुभाषचन्द्र कोठारी ने लिया। समिति के वरिष्ठ संतोष रूनवाल निलेष लोढ़ा एवं जितेन्द्र जैन ने बताया कि चातुर्मास में 44 दिवसीय भक्तामर महातप के साथ नौ दिवसीय नवकार महामंत्र की आराधना भी  7 अगस्त से आरंभ हो गई है। जिसमें 100 से अधिक आराधक श्री नमस्कार महामंत्र की आराधना कर रहे है। जिनके गुरूवार को एकासने का लाभ प्रदीप, प्रकाषचन्द्र जैन (कटारिया) परिवार ने लिया। जिनका बहुमान चातुर्मास समिति की ओर से समाज रत्न सुभाष कोठारी ने किया। दोपहर में सभी आराधकों ने एकासने का लाभ लिया।

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नवकार महामंत्र के जाप से असंभव कार्य भी संभव हो जाते है - अष्ट प्रभावक नरेन्द्र सूरीष्वरजी मसा

झाबुआ। जैन तीर्थ श्री ऋषभदेव बावन जिनालय के पोषध शाला भवन में चल रहे प्रवचनों में 8 अगस्त, गुरूवार को सुबह राजस्थान केसरी, अष्ट प्रभावक आचार्य देवेश श्रीमद् विजय नरेन्द्र सूरीष्वरजी मसा ने धर्मसभा में बताया कि श्रावण मास में वर्तमान चैबीसी के 8 तीर्थंकरों के नव कल्याणक आते है। नवकार महामंत्र की आराधना के अंतर्गत दूसरे दिन पारसनाथ भगवान सिद्ध बने। 
   आचार्य श्रीजी ने बताया कि श्रावण सुदी आठम को नवकार के 9 पद एवं नव कल्याणक, अक्षरों की दृष्टि से नवकार महामंत्र में सबसे छोटा सिद्ध पद है, परन्तु गुण में बड़ा है। सिद्धाणं के पांच अक्षर पंचम गति के परिचायक है। इसमें अशरीरी आरूपी आत्मा सिद्ध षिला में जाती है। नवकार महामंत्र भव भ्रमण से रक्षा हेतु छत एवं छतरी के समान है। आचार्य श्रीजी ने आगे कहा कि परिवर्तन, काल, प्रकृति में कभी भी बदलाव नही होता है, उसी प्रकार नवकार महामंत्र शाष्वत महामंत्र है। व्यवहार-विनय से अरिहंत का उपकार है, परन्तु निष्चय से सिद्ध का उपकार बड़ा है। लोगस्य सूत्र एवं सिद्धाणं में सिद्ध पद को याद किया गया है। भाव भक्ति से जुड़ना यह नवकार महामंत्र में समाहित है। मोक्ष मार्ग की प्ररूपना करने वाले अरिहंत हमारे आराध्य है, सिद्ध हमारा लक्ष्य है। 
मन को शांत रखने हेतु अरिहंत का करे ध्यान
महामंत्र में कोई व्यक्तिवाद नहीं है, अरिहंत शब्द में अर्थ छुपा हुआ है। अरिहंत अस्तित्व आत्मा की रिजुमति अर्थात सरल परिणाम। इंद्रियों में विषय विकार की विकृति जब बढ़ती है, तब आत्मा धर्म से दूर हो जाती है। पांच इंद्रियों में परमेष्ठी को बिठाने की बात आचार्य नरेन्द्र सूरीष्वरजी ने विषेष रूप से कहीं। मन को शांत रखने हेतु अरिहंत का ध्यान एवं सिद्ध की स्थापना आंख में करना चाहिए।
जीवन में क्रोध कभी नहीं आना चाहिए
आचार्य श्रीजी ने आगे कहा कि धर्म ध्यान में क्रोध विकसित करता है। अगर क्रोध सोमवार को आए तो कहना आज चंद्रवार है, इसलिए आज नहीं आना। मंगलवार को आए तो कहना मंगल ही मंगल है, क्रोध रूपी दंगल का आज स्थान नहीं। बुधवार को जब आए तो बुद्धि का हरण करता है, गुरूवार को आए तो गुरू के आषीर्वाद में कमी लाता है। शुक्रवार को शुक्रिया अदा करने का समय है, इसलिए क्रोध शुक्रवार को भी नहीं आना चाहिए। शनिवार जीवन में शनि खतरनाक है, क्रूर से दूर रहना चाहिए, इसलिए आज क्रूर क्रोध नहीं आना चाहिए और आप सब जानते है रविवार को तो छुट्टी होती है, इसलिए जीवन में क्रोध कभी नहीं आना चाहिए।
नवकार में व्यक्ति नहीं गुणों की होती है पूजा
आचार्य श्रीजी ने बताया कि सिद्धाणं के लाल वर्ण से सर्व कार्य सिद्ध होते है। नवकार में व्यक्ति नहीं गुणों की पूजा होती है। नाम और मोह को जीतने के लिए सिद्ध की आराधना जीवन में जरूरी है। नवकार महामंत्र के जाप से असंभव कार्य भी संभव हो जाते है। अष्ट प्रभावक ने बताया कि मिथ्या, दुर्भाव और दूर विचार को दूर करने के लिए नवकार के एक-एक पद में 1008 विद्या समाहित होती है।
नवकार महामंत्र के आराधकों के एकासने के लाभार्थी का हुआ बहुमान
धर्मसभा का संचालन श्री नवल स्वर्ण जयंती चातुर्मास समिति के अध्यक्ष कमलेष कोठारी ने किया। धर्मसभा बाद दादा गुरूदेव श्रीमद् विजय राजेन्द्र सूरीष्वरजी मसा की आरती एवं पूजा का लाभ चातुर्मास समिति के वरिष्ठ एवं समाज रत्न सुभाषचन्द्र कोठारी ने लिया। समिति के वरिष्ठ संतोष रूनवाल निलेष लोढ़ा एवं जितेन्द्र जैन ने बताया कि चातुर्मास में 44 दिवसीय भक्तामर महातप के साथ नौ दिवसीय नवकार महामंत्र की आराधना भी  7 अगस्त से आरंभ हो गई है। जिसमें 100 से अधिक आराधक श्री नमस्कार महामंत्र की आराधना कर रहे है। जिनके गुरूवार को एकासने का लाभ प्रदीप, प्रकाषचन्द्र जैन (कटारिया) परिवार ने लिया। जिनका बहुमान चातुर्मास समिति की ओर से समाज रत्न सुभाष कोठारी ने किया। दोपहर में सभी आराधकों ने एकासने का लाभ लिया।

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