संगध दशमी पर दिगंबर जेन समाज ने निकाला जुलुस
उक्त पर्व आत्मा की शक्ति द्वारा आत्मा को प्राप्त कर स्वयं में लीन हो जाने का संदेश देता है । जैन धर्म में बताये गये आठ कर्म को नष्ट कर मौक्ष प्राप्ति का मार्ग प्राप्त करना ही मुख्य लक्ष्य होता है ।
जैन धर्म भक्त नही वरन भगवान बनने की कला सिखाता है
भगवान महावीर के जयकारों से नगर हुआ भक्तिमय
झाबुआ । श्री दिगंबर जैन समाज के श्री शांतिनाथ जिनालय में इन दिन तप,धर्म एवं ज्ञान की गंगा प्रवाहित हो रही है । समाज के आशीष डोसी ने जानकारी देते हुए बताया कि दिगंबर जैन समाज के चातुर्मास के साथ ही पवित्र पर्यूषण पर्व भादो शुक्ल पंचमी से प्रारंभ होकर चतुर्दशी तक चल रहे हे । जिसके तहत मंदिरजी पर पर्व का प्रतिदिन आयोजन हो रहा है । प्रतिदिन भगवानजी की प्रतिमाओं का सूर्योदय के साथ ही मंत्रोच्चार के साथ पुरुष वर्ग द्वारा पावन अभिषेक करते हुए शांतिधारा अनुष्ठान किया जा रहा है । तत्पश्चात विधान पूजन बाहर से पधारे हुए पण्डितजी मुकेश शांस्त्री के मार्गदर्शन में किये जाने के साथ ही महिलाये एवं पुरूष वर्ग हर्षोल्लास के साथ धार्मिक अनुष्ठान एवं कार्यक्रमों मे बडी संख्या मे सहभागी हो रहे है । भक्ति भावना के साथ पर्व के दौरान रात्रि को संगीतमय आरती और तत्पश्चात पण्डित जी द्वारा धर्म के 10 लक्षणपर्व पर विशद विवेचना की जारही है । इस अवसर पर प्रतिदिन बच्चों द्वारा भी धर्माधारित कार्यक्रम प्रस्तुत कर नैतिक एवं धार्मिक संस्कार का अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया जारहा है । इसी कडी में स्थानीय श्री चन्द्रप्रभू नसियाजी में प्रतिदिन भगवानजी का अभिषेक, शातिधारा एवं पूजन का आयोजन किया जारहा है ।
समाज की वरिष्ठ सदस्या श्रीमती पुष्पा विजय शाह ने जानकारी देते हुए बताया कि पर्यूषण पर्व के छठवें दिन संयम धर्म की पूजा विधि विधान से मंदिरजी एवं नसियाजी में की गई । सुगध दशमी का पर्व समाजजनों ने पूरी भक्ति भावना के साथ मनाया । उक्त पर्व जीवन के दुष्कर्मों को जला कर धूपसी महक लाने की शिक्षा देता है । इसी कडी में श्री शांतिनाथ मंदिर एवं नसियाजी मंदिर में सायंकाल 5 बजे से सामूहिक धुप खेने का कार्यक्रम आयोजित किया गया तत्पश्चात आरती एवं भक्ति का आयोजन हुआ ।
इस अवसर पर विशाल चल समारोह निकाला गया जिसमे अहिंसा परमा धर्म... जैनम जयति शासनम, महावीर स्वामी की जय जय कार से पूरा वातावरण भक्तिमय हो गया । चल समारोह मंदिर जी से नसिया तक पहूंचा जहां धुप खेने के बाद चन्द्रप्रभू चालिसा एवं महा मंगल आरती की गई । उक्त पर्व आत्मा की शक्ति द्वारा आत्मा को प्राप्त कर स्वयं में लीन हो जाने का संदेश देता है । जैन धर्म में बताये गये आठ कर्म को नष्ट कर मौक्ष प्राप्ति का मार्ग प्राप्त करना ही मुख्य लक्ष्य होता है । इन कर्मो को अग्नि में जला कर भस्म कर आत्मसात होने के लिये जैन धर्म में सुगंध दशमी को एक पर्व के रूप में हर्षोल्लास के साथ समग्र समाज ने भक्ति भाव से मनाया । जैन धर्म भक्त नही वरन भगवान बनने की कला सिखाता है । प्रतिदिन दिगंबर जैन शांतिनाथ मंदिर में धार्मिक आयोजनों में समग्र समाज के श्रावक श्राविकाये भक्ति भावना के साथ सहभागी हो रहे है ।
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