बैल बनकर सकुल निकालते बच्चे- ग्रामीण अंचल की अनूठी परंपरा
* निर्मल पंड्या/ राणापुर:- ग्रामिण अंचलो में आखातीज पर विभिन्न टोने टोटको के माध्यम से जानने का प्रयास किया जाता है कि इस बार बारिश कैसी रहेगी साथ ही इस वर्ष फसल कैसी रहेगी। इसी परम्परा में ग्राम रूपाखेडा में बच्चों द्वारा हल एवं स्वंय के द्वारा छोटे हल का निर्माण किया जाता है एवं अन्य धार्मिक आयोजन जिनमें सर्वप्रथम धरती को पानी दिया जाता हे उन्ही बच्चों को अनाज भेंट किया जाता है तथा उसके उपरांत बैल बने बच्चों द्वारा हल जोता जाता है एवं खेत को खेडने की प्रक्रिया की जाती हैं। ग्रामिण अंचलो में चली आ रही विभिन्न परम्पराओं में से एक परम्परा हे जिसमें बच्चे खेल खेल में पुरे साल का सकुन निकालते है एवं फसल का भविष्य देखते हैं।
आखिर क्या हे परम्परा
प्रतिवर्ष आखातीज पर गर्मियों में ग्रामिण अंचलो में पानी एवं आने वाले साल के सकुन देखने के लिए उक्त परम्परारगत तरिके से ग्रामिणों द्वारा पानी का सकुन देखा जाता है। आयेाजन में सर्वप्रथम बच्चों द्वारा पलाश की लकडी का हल बनाया जाता है उसमें 2 बच्चों को बैल बनाकर खेती की जाती है जिसमें सर्वप्रथम बैलो एवं धरती को पानी दिया जाता है तथा उसके उपरांत अनाज दिया जाता है। बैल बने बच्चों द्वारा इन अनाज का वितरण ग्रामिणों में किया जाता है जिससे उनके घरों में अनाज एवं अन्य बरकत बनी रहती हैं।
हल जोतते बच्चे |
पानी देते बैल बने बच्चों को |
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